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केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्रीय स्तर से हरियाणा, पंजाब सहित इन राज्यों में भीगे गेहूं की होगी खरीद

केंद्र सरकार की तरफ से गेहूं खरीदी चालू कर दी गई है। साथ ही, मार्च में हुई बारिश से अधिकांश किसानों का गेहूं भीग गया था। केंद्र सरकार द्वारा नवीन नियमोें के अंतर्गत 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं खरीदने की छूट दी प्रदान की गई है।

भारत के विभिन्न राज्यों में गेहूं की कटाई चालू हो चुकी है। कटाई के उपरांत मौसम को ध्यान में रखते हुए किसान शीघ्र ही मंडी में गेहूं बेचने के लिए जा रहे हैं। साथ ही, हाल में हुई बारिश और ओलावृष्टि से किसानों का काफी गेहूं भीग गया था।

किसान चिंतिति थे, कि भीगे गेहूं को किस प्रकार मंडी में विक्रय किया जाए। वर्तमान में उसी को लेके केंद्र सरकार की तरफ से कदम पहल की जा रही है। 

गेहूं खरीद को लेकर भीगे गेहूं के लिए जो नियम सख्त थे। अब केंद्र सरकार द्वारा उनमें काफी राहत दे दी गई है। किसानों को गेहूं बेचने के लिए ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।

केंद्र के स्तर से कई राज्यों में भीगे गेंहू खरीदी पर राहत

मार्च माह में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि से पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में गेहूं की फसल को काफी मोटी हानि पहुंची थी। किसानों का गेहूं काफी ज्यादा भीग गया था। 

राज्य के किसान केंद्र सरकार से गेहूं खरीद में सहूलियत देने की मांग कर रहे थे। अब तीनों राज्यों के लिए केंद्र सरकार के स्तर से गेहूं खरीद हेतु बनाए गए नियमों में ढ़िलाई की गई है। इसका यह अर्थ है, कि किसान वर्षा से प्रभावित गेहूं को भी एमएसपी पर विक्रय कर पाएंगे।

कितने फीसद तक भीगा गेंहू खरीदेंगी गेंहू एजेंसियां

गेहूं खरीद के संदर्भ में केंद्र सरकार काफी चिंतित है। केंद्र सरकार का यह प्रयास रहा है, कि विगत वर्ष के सापेक्ष में किसी भी परिस्थिति में गेहूं की खरीद न हो पाए। 

इस वजह से सरकार का प्रयास है, कि जैसा भी गेहूं मंडियों में बिक्री के लिए पहुंच रहा है। उसको किसानों से खरीद लिया जाए। नवीन नियमों के अंतर्गत एफसीआई और बाकी एजेंसियों से कहा गया है, कि 20 प्रतिशत तक भीगा गेहूं एजेंसियों द्वारा खरीदा जा सकता है। 

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लाखों हेक्टेयर गेहूं की फसल हुई प्रभावित

एक आंकड़ें के मुताबिक, इस वर्ष मार्च में हुई वर्षा से भारत भर में 11 लाख हेक्टेयर में बोई गई गेहूं की फसल प्रभावित हुई है। इससे 1.82 लाख किसान प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। 

फिलहाल, केंद्र सरकार द्वारा राजस्थान में 20 फीसद के भीगे गेहूं के अनुरूप खरीद के लिए कहा गया है। मध्य प्रदेश सरकार भी इसी नियम के आधार पर कार्य कर रही है। वहां भी काफी राहत प्रदान कर दी गई है।

विगत वर्ष की तुलना में गेंहू खरीदी का लक्ष्य कम

देश में गेहूं खरीद शुरू कर दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा रबी मार्केर्टिंग सीजन 2023-24 में 341.50 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जबकि विगत वर्ष यह लक्ष्य 444 लाख मिट्रिक टन था। 

इस बार गेहूं खरीद में अच्छी खासी गिरावट आ रही है। ऐसे में कम गेहूं खरीद से खुद केंद्र सरकार परेशान है। घरेलू खपत का प्रबंधन करना भी केंद्र सरकार के लिए चुनौती होगा।

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलों की ताबड़तोड़ खरीददारी कर रही है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी है, कि अब तक केंद्र सरकार 24,000 टन मूंग खरीद चुकी है। इसके साथ ही सरकार आगामी दिनों में 4,00,000 टन खरीफ मूंग की खरीददारी करने जा रही है। इसके लिए सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार यह 4,00,000 टन खरीफ मूंग उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 10 राज्यों के किसानों से खरीदेगी।


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अधिकारियों ने बताया है, कि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को पूरी तरह से केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय नियंत्रित करता है। कृषि मंत्रालय जब देखता है, कि बाजार में फसलों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिर गए हैं, तब कृषि मंत्रालय मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलें खरीदना प्रारंभ कर देता है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचने पर मजबूर न होना पड़े। यह खरीददारी कृषि मंत्रालय के आधीन आने वाला भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) करता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अभी तक 24,000 टन मूंग की खरीदी हो चुकी है, जिसमें से 19,000 टन अकेले कर्नाटक के किसानों से खरीदी गई है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल पाए। इसके लिए खरीदी प्रक्रिया की हर राज्य में सघनता से जांच की जा रही है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को बेचने पर किसी भी प्रकार की परेशानी न होने पाए।


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बकौल कृषि मंत्रालय, मूंग के अलावा 2022-23 खरीफ सत्र में उगाई गई 2,94,000 टन उड़द और 14 लाख टन मूंगफली की भी खरीददारी की जाएगी। कृषि मंत्रालय ने इसकी स्वीकृति भी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) को भेज दी है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने कृषि मंत्रालय को अपने जवाब में बताया है, कि इस साल अभी तक उड़द और मूंगफली की खरीद नहीं हो सकी है। क्योंकि अभी भी बाजार में इन दोनों फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत ज्यादा ऊपर चल रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने अभी तक जिन फसलों की खरीद की है। उन्हें कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकारों को देना शुरू कर दिया है, ताकि इन फसलों को पीडीएस के माध्यम से खपाया जा सके। इसी तरह अगर खरीफ की फसलों के अंतर्गत आने वाले धान की फसल की बात करें, तो अभी तक भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) के माध्यम से सरकार ने 306.06 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की है। जबकि सरकार का लक्ष्य 775.72 लाख टन धान खरीदने का है।
केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

भारत सरकार देश के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में राज्य तथा केंद्र सरकारें आए दिन कृषि नीति और कानून में किसान हितैषी बदलाव करती रहती हैं। ताकि किसानों को फायदा हो और वह अपने पैरों पर खड़ी रह सकें। हाल ही में भारत सरकार की कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मिलिंग खोपरा (नारियल) के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इसी के साथ सरकार ने घोषणा की है, कि अब बॉल खोपरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी 750 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोत्तरी की गई है। सरकार की इस घोषणा से नारियल उत्पादक किसानों को राहत मिलने की उम्मीद है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी किए जानें से किसान भाई नारियल की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। जिससे नारियल की खेती का रकबा बढ़ाने में मदद मिलेगी। अगर इस खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होने लगती है, तो नारियल का प्रसंस्करण बिजनेस को बढ़ाने में भी किसान आगे आ सकते हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब इस कीमत पर बिकेगा नारियल

सरकार ने कहा है, कि नारियल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब मिलिंग खोपरा 10,860 रुपये क्विंटल के भाव पर बिकेगा। नारियल की इस किस्म पर 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। जब कि बॉल खोपरा नारियल 11,750 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकेगा। इस नारियल पर 750 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के बढ़ने से नारियल के किसानों का मुनाफा बढ़ने की पूरी संभावना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कहा है, कि नारियल की कीमतों का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर किया गया है। साथ ही, कीमतों के निर्धारण में प्रमुख नारियल उत्पादक राज्यों के सुझावों पर भी गौर किया गया है। नारियल की खेती गेहूं, चावल और सब्जियों से ज्यादा मुनाफे वाली खेती होती है। यदि किसान वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए नारियल की खेती करें, तो इस खेती से किसान बंपर कमाई कर सकते हैं। नारियल की खेती में एक बार रोपाई करने के बाद आगामी 80 सालों तक इसकी फसल ली जा सकती है। साथ ही, नारियल के बाग में खाली पड़ी जमीन में काली मिर्च, इलायची या दूसरी मसाला फसलों की खेती करके अतिरिक्त आय भी अर्जित की जा सकती है।


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इन दिनों भारत के साथ ही विदेशी बाजारों में साबुत नारियल तथा नारियल के तेल की जबरदस्त मांग है। साथ ही, इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे भविष्य में किसानों के पास इस खेती से अच्छी कमाई करने का मौका होगा।
कृषि उड़ान योजना के तहत जोड़े जाएंगे 21 हवाई अड्डे;  किसानों को होगा सीधा फायदा

कृषि उड़ान योजना के तहत जोड़े जाएंगे 21 हवाई अड्डे; किसानों को होगा सीधा फायदा

जल्दी खराब होने वाली कृषि, बागवानी और मत्स्य उत्पादों की ओर ध्यान देते हुए सरकार ने एक नई योजना लाने का फैसला किया है. हाल ही में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जानकारी दी है कि केंद्रीय सरकार कृषि उड़ान योजना लाने जा रही है जिसके तहत देश में 21 और हवाई अड्डों को आपस में जोड़ा जाएगा. ऐसा करने से जल्दी खराब होने वाले उत्पाद को हवाई परिवहन के माध्यम से तेज रफ्तार से एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचाया जा सकता है.कृषि उप प्रमुखों की इंदौर में हुई बैठक के दौरान यह जानकारी सिंधिया द्वारा दी गई है. इस दौरान दी गई जानकारी से पता चला है कि इससे पहले कृषि उड़ान योजना के तहत देश में कम से कम एकत्रित हवाई अड्डे जोड़े जा चुके हैं और आगे चलकर 21 और हवाई अड्डों को जोड़ने के लिए रक्षा मंत्रालय से बातचीत चल रही है.कृषि उड़ान योजना को जल्द खराब होने वाले उत्पाद जैसे कि कृषि और मत्स्य पालन (मछली पालन) आदि को एक जगह से दूसरी जगह पर जल्दी पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.केंद्रीय मंत्री ने जानकारी दी कि इस योजना के तहत हमारे पूर्वोत्तर भारत में पैदा होने वाले नींबू,  कटहल और अंगूर जैसी फसलें न केवल देश के अन्य भागों में पहुंच पाएगी बल्कि हम इन्हें अन्य देश जैसे, जल  इंग्लैंड,  सिंगापुर  तक भी पहुंचा सकते हैं.

बैठक में भाग लेंगे 30 देशों के कृषि प्रतिनिधि

G20 बैठक के लिए अलग-अलग तरह की कॉन्फ्रेंस हो रही है और दूसरे दिन खाद्य सुरक्षा और पोषण, पर्यावरण अनुकूल तरीकों से टिकाऊ खेती, समावेशी कृषि मूल्य श्रृंखला एवं खाद्य आपूर्ति तंत्र और कृषि रूपांतरण के डिजिटलीकरण सरीखे चार प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर पूरी तरह से विचार विमर्श किया गया. यह एक तीन दिवसीय बैठक है जिसमें आखिरी दिन प्रतिनिधियों द्वारा कृषि कार्य समूह की ओर दिए जाने वाले तथ्यों पर विचार विमर्श किया जाएगा. यह तीन दिवसीय बैठक भारत के  प्रमुख शहर इंदौर में हो रही है. ये भी पढ़े: इस खाद्य उत्पाद का बढ़ सकता है भाव प्रभावित हो सकता है घरेलु बजट

क्या है कृषि उड़ान योजना 2.0

अक्टूबर 2021 में कृषि उड़ान योजना 2.0 की घोषणा की गई थी.इस योजना के तहत मुख्य रूप से सभी पहाड़ी क्षेत्र और पूर्वोत्तर राज्यों और इसके अलावा आदिवासी क्षेत्रों में खराब होने वाले सभी तरह के खाद्य पदार्थों के लिए परिवहन की सुविधा मुहैया करवाने की बात की गई थी. कृषि से जुड़े हुए इस तरह के उत्पादों को हवाई परिवहन द्वारा एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचाने के लिए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) भारतीय मालवाहकों और पी2सी (यात्री) के लिए लैंडिंग, पार्किंग, टर्मिनल नेविगेशनल लैंडिंग शुल्क (टीएनएलसी) और रूट नेविगेशन सुविधा शुल्क (आरएनएफसी) की पूर्ण छूट देता है.
सीवीड की खेती के लिए आई नई तकनीक, सरकार से भी मिलेगी सहायता

सीवीड की खेती के लिए आई नई तकनीक, सरकार से भी मिलेगी सहायता

इन दिनों बाजार में सीवीड (समुद्री सिवार या शैवाल) की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण इसकी मांग को पूरा करने के लिए बहुत सी संस्थाएं नई तकनीकों की खोज में जुटी हैं। सीवीड की खेती आमतौर पर समुद्र पर फैलाई गई रस्सी में की जाती है। इसके साथ ही समुद्र में जाल फैलाकर भी सीवीड की खेती की जाती है। लेकिन इस प्रकार सीवीड की खेती करने में भारी खर्चा आता है जिसके कारण सीवीड की खेती करना बेहद मुश्किल हो गया है। इन सब के बावजूद केंद्र सरकार सीवीड की खेती करने के लिए किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रही है। ताकि देश में सीवीड की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। सरकार ने अपने आंकड़ों से बताया है कि भारत में शैवाल की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनका इस्तेमाल लगभग 221 तरह के पदार्थ बनाने में होता है। इसलिए इसकी खेती करने से किसानों को भरपूर मुनाफा हो सकता है।

सीवीड की खेती की तकनीक

यह तकनीक बेंगलुरु स्थित एक
स्टार्टअप ने विकसित की है। जिसे 'सी सिक्स एनर्जी' के नाम से जाना जाता है। स्टार्टअप के संस्थापक ने बताया है कि उन्होंने कई ऐसे तरीके विकसित किए हैं जिनसे बड़ी मात्रा में बेहद आसानी से सीवीड उगाई जा सकती है और उनसे कई उपयोगी पदार्थ बनाए जा सकते हैं।

स्टार्टअप ने तैयार किया सी कंबाइन

सीवीड की खेती करने के लिए स्टार्टअप ने सी कंबाइन तैयार किया है। यह एक ऐसा यंत्र है जो समुद्र में सीवीड की कटाई करता है और दोबारा बीज रोप देता है। जिसे अगली बार के लिए सीवीड उगाने में आसानी होती है। यह यंत्र बेहद व्यवस्थित तरीके से सीवीड की कटाई करता है।

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सीवीड की खेती के लिए सरकार कर रही है प्रोत्साहित

सरकार सीवीड के किसानों को इसकी खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि किसान भाई ज्यादा से ज्यादा मात्रा में सीवीड की खेती करें। इसके लिए सरकार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 5 साल की परियोजना पर काम कर रही है। इस योजना के अंतर्गत सरकार 640 करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। इस राशि से सरकार देश के तटीय राज्यों के मछुआरों को शैवाल के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। सरकार का उद्देश्य है कि सीवीड की खेती में पुरुषों के साथ-साथ महिलायें भी आगे आएं और इस खेती में बराबर से भागीदार हों। इसके साथ ही सरकार शैवाल उत्पादन बढ़ाने के लिए राफ्ट बनाने के लिए सहायता भी दे रही है। सरकार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत राफ्ट और मोनोलिन/ट्यूबनेट बनाने के लिए किसानों और मछुआरों को क्रमशः 1500 रुपये और 8000 रुपये की व‍ित्‍तीय सहायता कर रही है। सरकार का अनुमान है कि यह मदद निश्चित रूप से किसानों को सीवीड की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने में मददगार साबित होगी। जिससे देश मएब सीवीड के उत्पादन को बढ़ाया जा सकेगा साथ ही बाजार में सीवीड की बढ़ती हुई मांग की पूर्ति भी की जा सकेगी।
केंद्र ने जूट की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया, जूट उत्पादकों को हुआ फायदा

केंद्र ने जूट की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया, जूट उत्पादकों को हुआ फायदा

पूर्वी भारत में जूट का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा, बिहार, असम, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में लाखों किसान जूट की खेती किया करते हैं। जूट का उत्पादन करने वाले किसान भाइयों के लिए बड़ा समाचार है। किसानों की मांग को मंदेनजर रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा कच्चे जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मेंं 6 फीसद का इजाफा करने का निर्णय लिया है। जिसके लिए आर्थिक मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए ) ने स्वीकृति भी दे दी है। विशेष बात यह है, कि सीसीईए द्वारा एमएसपी में यह वृद्धि केवल 2023-24 सीजन हेतु की गई है। इससे भारत के लाखों किसान भाइयों को लाभ होगा। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीसीईए ने कच्चे जूट की एमएसपी में 300 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया है। फिलहाल, एक क्विंटल जूट का भाव 5050 रुपये हो गया है। साथ ही, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने केंद्र सरकार के इस कदम की सराहना करते हुए कहा है, कि एमएसपी की यह वृध्दि वर्ष 2018-19 में घोषित उत्पादन खर्च के अनुसार है। जानकारी के लिए बतादें कि इससे भारत के 40 लाख किसान लाभांवित होंगे। वहीं, 4 लाख कामगार भी इससे फायदा उठाएंगे। उन्होंने बताया है, कि एमएसपी में वृद्धि होने से पैदावार की अखिल भारतीय औसत लागत पर 63.20% का रिटर्न मिलेगा।

जूट का सर्वाधिक उत्पादन इस राज्य में होता है

जानकारी के लिए बतादें, कि पूर्वी भारत में जूट का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। विशेष रूप से मेघाल, त्रिपुरा, बिहार, असम, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में लाखों किसान जूट का उत्पादन करते हैं। इन किसानों की आमदनी का प्रमुख साधन भी जूट की खेती होती है। विशेष बात यह है, कि इन प्रदेशों के 33 जनपदों के अंदर जूट का उत्पादन किया जाता है। बतादें कि इन राज्यों में से जूट का सर्वाधिक उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल है। यहां समकुल जूट का 50 फीसद से भी ज्यादा का उत्पादन होता है। यही कारण है, कि पूर्व में पश्चिम बंगाल के अंदर सर्वाधिक जूट मिला था। ये भी पढ़े: सेहत के साथ किसानों की आय भी बढ़ा रही रागी की फसल

केंद्र व राज्य सरकारें जूट की वस्तुओं के कुल पैदावार की 70% खरीदारी करती हैं

जूट का कृषि क्षेत्र में बेहद इस्तेमाल किया जाता है। जूट के इस्तेमाल से थैला, बोरी, बैग और बहुत सी अन्य प्रकार की वस्तुएं भी निर्मित की जाती हैं। साथ ही, जूट उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए, सरकार द्वारा जूट पैकेजिंग अधिनियम, 1987 को अधिनियमित किया है। इसके अंतर्गत जूट में पैक की जाने वाली कुछ वस्तुओं को निर्धारित किया गया है। वहीं, केंद्र सरकार द्वारा जूट बैग में खाद्यान्नों की पैकिंग हेतु आरक्षण भी दे रखा है। इसके खाद्यान्न एवं चीनी हेतु क्रमशः 100% एवं 20% जूट के बैग में पैकिंग जरुरी की गई है। विशेष बात यह है, कि केंद्र एवं राज्य सरकारें खाद्य पदार्थों की पैकिंग हेतु जूट की वस्तुओं की कुल पैदावार का 70% फीसद खरीदारी करती हैं। मुख्य बात यह है, कि जूट की बोरी का सर्वाधिक इस्तेमाल धान एवं गेहूं खरीदी के समय पैकिंग हेतु किया जाता है।
केंद्र सरकार ने इस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में किया इजाफा, अब किसान होंगे मालामाल

केंद्र सरकार ने इस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में किया इजाफा, अब किसान होंगे मालामाल

देश की केंद्र सरकार लगातार किसानों की आय बढ़ाने का प्रयत्न कर रही है। इसके अंतर्गत आए दिन सरकार नई योजनाएं लॉन्च करती रहती है, जिससे देश के किसानों को फायदा होता है और कृषक आधुनिक तरीके से खेती करके अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं। इसके साथ ही समय-समय पर केंद्र सरकार किसानों से खरीदे जाने वाले अनाज और कच्चे माल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी बढ़ोत्तरी करती है ताकि किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल सके। अब खबर है कि केंद्र सरकार ने जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी है। यह निर्णय सरकार ने किसानों की मांग को देखते हुए लिया है। जूट के किसान लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की मांग कर रहे थे। इसके लिए केंद्र सरकार की आर्थिक मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए ) ने मंजूरी भी दे दी है। सीसीईए  के अधिकारियों ने बताया है कि यह वृद्धि सिर्फ 2023-24 सीजन के लिए की गई है। ताकि देश के लाखों जूट किसान इससे लाभान्वित हो पाएं। ये भी पढ़े: न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में बेहतर जानें फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि सरकार ने जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 300 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है। इसके साथ ही अब जूट का सरकारी रेट 5050 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। सरकार की इस घोषणा से देश के 40 लाख जूट किसान लाभान्वित होंगे। साथ ही जूट उद्योग में लगे 4 लाख ज्यादा कामगारों को अप्रत्यक्ष फायदा होगा। जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने तारीफ की है।

भारत के इन राज्यों में होता है जूट का उत्पादन

जूट का उत्पादन ज्यादातर पूर्वी भारत में किया जाता है। इसकी खेती खास तौर पर पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में की जाती है। इन राज्यों के कुछ चयनित जिलों में जूट का उत्पादन किया जाता है। देश में जूट की खेती से लाखों किसान जुड़े हुए हैं। जो इनकी आय का मुख्य साधन है। देश में जूट सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। भारत के कुल उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत जूट पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। पश्चिम बंगाल का मिदनापुर जिला इसकी खेती का गढ़ माना जाता है। इसी कारण जूट मिलों की संख्या भी पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा जूट उत्पादक देश है। भारत में हर साल औसतन 1,960,380 टन जूट का उत्पादन किया जाता है। भारत के बाद बांग्लादेश जूट का दूसरा सबसे बाद उत्पादक देश है। देश में जूट का सबसे ज्यादा उपयोग बैग, थैला, बोरी, रस्सी और कई अन्य तरह की चीजें बनाने में होता है। देश की केंद्र सरकार जूट की खेती को लगातार बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। इसके लिए सरकार ने इसे जूट पैकेजिंग अधिनियम, 1987 के अंतर्गत अधिनियमित किया है। जिसके अंतर्गत कई तरह की चीजों को जूट की थैलियों में पैक करना अनिवार्य कर दिया गया है। सरकार ने खाद्यान्न को पैक करने के लिए पूरी तरह से जूट के बोरे उपयोग करने के आदेश दिए हैं, इसके साथ ही चीनी की 20% पैकिंग भी जूट के बोरों में करनी होगी। देश में जूट से कुल उत्पादित होने वाले 70 प्रतिशत सामान की राज्य और केंद्र सरकारें खरीदारी करती हैं। देश में जूट के बोरों का सबसे ज्यादा उपयोग अनाज भरने के लिए किया जाता है।
इस योजना के अंतर्गत सरकार किसानों को देगी 18 लाख रुपये, ऐसे करें आवेदन

इस योजना के अंतर्गत सरकार किसानों को देगी 18 लाख रुपये, ऐसे करें आवेदन

सरकार लगातार किसानों की आमदनी बढ़ाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए सरकार ने विभिन्न स्तरों पर ढेरों योजनाएं चला रखी हैं। जिनसे देश के किसान लगातार लाभान्वित हो रहे हैं। इसी क्रम में सरकार ने एक और योजना शुरू की है। जिसे 'पीएम किसान एफपीओ योजना' नाम दिया गया है। इस योजना के अंतर्गत सरकार किसान को एग्रीकल्चर बिजनेस शुरू करने के लिए 18 लाख रुपये तक की सहायता देती है। योजना का लाभ लेने के लिए कम से कम 11 किसानों को मिलकर एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाना जरूरी है।

क्या है पीएम किसान एफपीओ योजना

किसान एफपीओ योजना को केंद्र सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए चलाई है। जिसमें खेती बाड़ी से जुड़े बिजनेस शुरू करने के लिए 18 लाख रुपये तक की राशि मुहैया कवाई जाती है। यह राशि आवेदन करने के बाद आगामी 3 साल में सरकार की तरफ से प्रदान की जाएगी। इस योजना से जुडने पर और भी कई तरह के फायदे होते हैं। जैसे:- किसान सस्ती दरों पर बैंकों से लोन हासिल कर सकते हैं। इसके साथ ही इस योजना के अंतर्गत उपज को बेंचने के लिए किसानों के लिए आसानी से बाजार उपलब्ध हो जाता है। साथ ही किसान भाई बेहद रियायती दरों पर फर्टिलाइजर, सीड, केमिकल और कृषि यंत्र जैसे जरूरी सामान भी खरीद सकते हैं। ये भी पढ़े: इन कृषि यंत्रों पर सरकार दे रही है भारी सब्सिडी, आज ही करें आवेदन

ये लोग इस योजना का लाभ उठा सकते हैं

आवेदक का कृषि का व्यवसाय होना जरूरी है। इसके साथ ही उसके पास कृषि योग्य भूमि होना चाहिए। आवेदक किसान उत्पादक संगठन का हिस्सा होना चाहिए। मैदानी क्षेत्र में किसान उत्पादक संगठन में कम से कम 300 सदस्य होने चाहिए, इसी प्रकार पहाड़ी क्षेत्र में किसान उत्पादक संगठन में 100 सदस्य होने चाहिए।

आवेदनकर्ता के लिए ये दस्तावेज होंगे जरूरी

आवेदनकर्ता के पास आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, जमीन के कागजात, राशन कार्ड, आय प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, बैंक खाता विवरण और मोबाइल नंबर होना अनिवार्य है। इन सभी दस्तावेजों की जानकारी आवेदन करते समय देनी होगी।

ऐसे करें पीएम किसान एफपीओ योजना में आवेदन

जो  भी किसान इस योजना के अंतर्गत लाभ उठाना चाह रहे हैं उन्हे सर्वप्रथम किसान उत्पादक संघ (एफपीओ) में अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। यह प्रक्रिया ई-नाम पोर्टल के माध्यम से बेहद आसानी से पूरी की जा सकती है। रजिस्ट्रेशन करने के लिए ई-नाम की आधिकारिक वेबसाइट https://www.enam.gov.in पर जाएं। वहां पर ई-नाम का पेज होगा। इस पेज में अपनी जानकारी भरने के बाद सबमिट कर दें। इसके अलावा किसान भाई ई-नाम मोबाइल ऐप और नजदीकी ई-नाम मंडी जाकर भी रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।
यह राज्य सरकार कृषकों को कृषि यंत्र खरीद पर अच्छा-खासा अनुदान प्रदान कर रही है

यह राज्य सरकार कृषकों को कृषि यंत्र खरीद पर अच्छा-खासा अनुदान प्रदान कर रही है

मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से किसानों के हित में ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना के अंतर्गत कृष उपकरणों और मशीनों को खरीदने पर 30 से 50 फीसद तक अनुदान मुहैय्या करा रही है। आधुनिक दौर में खेती विज्ञान पर आधारित हो चुकी है। खेती को सुगम और सरल बनाने कि लिए प्रतिदिन नवीनतम मशीनों का आविष्कार किया जा रहा है। इन मशीनों के इस्तेमाल से वक्त की भी बचत होती है। साथ ही, खेती पर किए जाने वाले खर्चे में भी काफी सहूलियत मिलती है। इन्हीं वजहों के चलते अलग- अलग राज्य सरकारें अपने- अपने राज्यों में कृषि यंत्रों की खरीद हेतु बेहतरीन अनुदान देती हैं। जिससे किसान भाईयों को खेती करने में किसी भी तरह की कोई समस्या ना हो पाए। कृषि जागरण के अनुसार, मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से किसानों को ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना के अंतर्गत कृषि मशीनों की खरीद पर अच्छी-खासी सब्सिडी देने की घोषणा की है। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सरकार भी इस बात से सहमत है, कि वर्तमान में खेती तकनीक पर आधारित हो गई है। अगर किसान भाइयों को आधुनिक और नवीन मशीनों की खरीद पर आर्थिक सहायता प्रदान नहीं की जाए, तो बाकी राज्यों के कृषकों से पीछे रह जाएंगे। दरअसल, कृषि यंत्र अत्यंत महंगे मिलते हैं। समस्त किसान इन्हें खरीदने के लिए सक्षम नहीं होते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर एमपी सरकार द्वारा कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान प्रदान करने का निर्णय लिया है।

इन यंत्रों की खरीद पर कितने प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा

मध्य प्रदेश सरकार ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना के अंतर्गत कृषि ऊपकरणों एवं मशीनों की खरीद पर 30 से 50 प्रतिशत तक अनुदान मुहैय्या करा रही है। इससे कृषकों को श्रू मास्टर, मल्चर, सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, सुपर सीडर, क्रॉप रीपर, हैप्पी सीडर और जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर की खरीद करने पर 40 से 60 हजार रुपये का अनुदान मुहैय्या करा रही है। साथ ही, मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से अनुदान की घोषणा करने पर किसानों के मध्य प्रशन्नता की लहर है। किसान भाइयों को यह उम्मीद जताई है, कि इन यंत्रों की सहायता से खेती करने पर अच्छी उपज मिल सकेगी।

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जितने भी विकसित देश हैं सब मशीनों के सहयोग से खेती करते हैं

आज की तारीख में जितने भी विकसित देश हैं, वहां यंत्रों एवं मशीनों की सहायता से खेती-किसानी की जा रही है। रूस, अमेरिका और कनाड़ा समेत बहुत सारे विकसित देशों में किसान अकेले ही यंत्र की सहायता से सैंकड़ों एकड़ में उत्पादन कर रहे हैं। अगर भारत में समस्त किसानों के पास कृषि यंत्र की उपलब्धता हो जाए, तब यहां के कृषक भी पश्चिमी देशों के किसानों की भाँति बेहतरीन ढंग से खेती कर सकेंगे। बतादें, कि मध्य प्रदेश के अतिरिक्त दूसरे प्रदेश भी कृषि यंत्रों की खरीद पर वक्त-वक्त पर अनुदान मुहैय्या करा देते हैं। साथ ही, विगत फरवरी माह में पंजाब सरकार द्वारा कृषि यंत्रों की खरीद करने पर 50 प्रतिशत अनुदान देने की घोषणा की थी। जनरल कैटेगरी में आने वाले किसानों को 40 प्रतिशत अनुदान धनराशि प्रदान की जा रही थी। साथ ही, बाकी श्रेणी के कृषकों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का प्रावधान था।
केंद्र सरकार ने अन्न भंडारण योजना को मंजूरी दी, हर एक ब्लॉक में बनेगा गोदाम

केंद्र सरकार ने अन्न भंडारण योजना को मंजूरी दी, हर एक ब्लॉक में बनेगा गोदाम

केंद्र सरकार की तरफ से भारत के अंदर बढ़ती अन्न की बर्बादी को ध्यान में रखते हुए। अन्न भंडारण योजना को स्वीकृति दी है। इस योजना के अंतर्गत देश के प्रत्येक ब्लॉक में गोदाम निर्मित किए जाएंगे। भारत में अन्न की बर्बादी ना हो इसको लेके केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार की ओर से अन्न भंडारण योजना को स्वीकृति दे दी गई है। जिसके अंतर्गत हर एक ब्लॉक में 2 हजार टन के गोदाम स्थापित किए जाएंगे। इस व्यवस्था को शुरू करने के लिए त्रिस्तरीय प्रबंध किए जाएंगे। इस योजना का उद्देश्य अन्न की बर्बादी को रोकना है। बतादें, कि फिलहाल भारत में अन्न भंडारण की कुल क्षमता 47 प्रतिशत है। परंतु, केंद्र सरकार की इस योजना से अन्न भंडारण में तीव्रता आएगी। कैबिनेट की बैठक खत्म हो जाने के उपरांत केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का कहना है, कि सहकारिता मंत्री के नेतृत्व में समिति बनाई जाएगी। योजना की शुरुआत 700 टन अन्न भंडारण के साथ होगी। इस योजना की शुरूआत होने पर भारत में खाद्य सुरक्षा को बल मिलेगा। इस योजना को जारी होने पर अन्न भंडारण क्षमता में इजाफा होगा। वर्तमान में भारत के अंतर्गत अनाज भंडारण की क्षमता 1450 लाख टन है। जो कि फिलहाल बढ़कर 2150 लाख टन हो जाएगी।

हर एक ब्लॉक में गोदाम स्थापित किए जाऐंगे

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस लक्ष्य को हांसिल करने के लिए 5 साल का वक्त लग जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार पांच साल में 1 लाख करोड़ रुपये का खर्चा करने वाली है। योजना के अंतर्गत भारत के हर एक ब्लॉक में गोदाम स्थापित किए जाऐंगे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के मुताबिक, यह योजना सहकारिता क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा अन्न भंडारण कार्यक्रम है। इस योजना से भारत में रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। इसके अतिरिक्त फसल की बर्बादी भी रुकेगी। यह भी पढ़ें: भंडारण की समस्या से मिलेगी निजात, जल्द ही 12 राज्यों में बनेंगे आधुनिक स्टील गोदाम

खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी

केंद्र सरकार के अनुसार, सहकारिता क्षेत्र में गोदाम के अभाव के चलते अन्न की बर्बादी ज्यादा हो रही है। अगर ब्लॉक स्तर पर गोदाम निर्मित होंगे तो अन्न का भंडारण होने के साथ-साथ ट्रांसपोर्टिंग पर आने वाली लागत भी कम आएगी। योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। फिलहाल, भारत में प्रत्येक वर्ष 3100 लाख टन खाद्यान्न की पैदावार होती है। लेकिन, सरकार के पास केवल उत्पादन के 47 प्रतिशत भाग को भंडारण करने की ही व्यवस्था है। जो कि इस योजना के आने के उपरांत ठीक हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने धान सहित इन फसलों की एमएसपी में की बढ़ोत्तरी

केंद्र सरकार ने धान सहित इन फसलों की एमएसपी में की बढ़ोत्तरी

धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 143 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की गई है। इसी प्रकार तुअर एवं उड़द दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी काफी ज्यादा इजाफा हुआ है। मानसून के आने से पहले केंद्र सरकार ने किसानों को बड़ा उपहार दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा धान समेत विभिन्न फसलों की एमएसपी बढ़ा दी है। जानकारी के अनुसार, धान की एमएसपी में 143 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इजाफा किया गया है। इसी प्रकार तुअर एवं उड़द दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी खूब वृद्धि की गई है। साथ ही, इस खबर से किसानों के मध्य खुशी की लहर दौड़ रही है। किसानों ने केंद्र सरकार के इस कदम की काफी सराहना की है।

केंद्र सरकार ने धान सहित दलहन की एमएसपी में किया इजाफा

कैबिनेट बैठक के पश्चात मोदी सरकार ने धान के साथ- साथ दलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की स्वीकृति दी है। विशेष बात यह है, कि खरीफ फसलों की एमएसपी में 3 से 6 प्रतिशत का इजाफा किया गया है। तुअर दाल की एमएसपी में 400 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की गई है। इस तरह अब तुअर दाल का भाव बढ़कर 7000 रुपये क्विंटल तक पहुँच चुका है। साथ ही, उड़द दाल के न्यूनतम समर्थम मूल्य में 350 रुपये की वृद्धि की गई है। फिलहाल, एक क्विटंल उड़द दाल की कीमत 6950 रुपये हो चुकी है।

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मोटे अनाज की फसलों पर कितने रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की गई है

विशेष बात यह है, कि मोटे अनाज की एमएसपी में भी वृद्धि दर्ज की गई है। केंद्र सरकार द्वारा मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए यह कदम उठाया गया है। केंद्रीय कैबिनेट ने मक्के की एमएसपी में 128 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की है।

करोड़ों गरीबों को खाद्य उपलब्ध कराया गया है

साथ ही, बैठक के पश्चात मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है, कि खरीफ की पैदावार 2018 में 2850 लाख टन था। जो कि अब बढ़कर 330 मिलियन टन पर पहुँच जाएगा। उनकी माने तो मूंग दाल की एमएसपी में 10% प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। अब मूंग दाल की कीमत 8558 रुपये क्विंटल तक पहुँच गई है। वहीं, सोयाबीन, रागी, ज्वार, बाजारा और मेज की एमएसपी में 6 से 7% प्रतिशत का इजाफा किया गया है। इसी प्रकार कपास के समर्थन मूल्य में भी 10% प्रतिशत तक की वृद्धि की गई है। विशेष बात यह है, कि सरकार ने फर्टिलाइजर के भाव में किसी प्रकार की बढ़ोत्तरी नहीं की है। सरकार का यह कहना है, कि हमारी सरकार ने 16-17 करोड़ गरीबों को खाद्य उपलब्ध कराया है।

केंद्र सरकार प्रतिवर्ष 23 फसलों के लिए एमएसपी जारी करती है

बतादें, कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर सरकार प्रति वर्ष 23 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित करती है। CACP 23 फसलों पर एमएसपी की सिफारिश लागू करता है। इसके अंतर्गत सात अनाज, सात तिलहन, पांच दलहन और चार कमर्शियल फसलें शम्मिलित हैं। इन 23 फसलों में से 15 खरीफ फसलें हैं और अन्य रबी फसलें हैं।

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पिछले साल बासमती चावल के निर्यात का आंकड़ा क्या था

बतादें, कि धान की एमएसपी में वृद्धि किए जाने से पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत विभिन्न राज्यों के किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित होगा। क्योंकि, इन राज्यों में धान का काफी अच्छा उत्पादन होता है। एकमात्र पश्चिम बंगाल 54.34 लाख हेक्टेयर में धान की खेती करता है, जिससे 146.06 लाख टन धान की पैदावार होती है। विशेष बात यह है, कि भारत सबसे ज्यादा बासमती चावल का निर्यात करता है। विगत वर्ष भारत ने 24.97 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया था।
पीएम प्रणाम योजना को मिली मंजूरी, केंद्र सरकार खास पैकेज के रूप में 3.7 लाख करोड़ करेगी खर्च

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यूरिया सब्सिडी स्कीम को 31 मार्च 2025 तक जारी रखने के लिए कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी है। इसके अतिरिक्त मृदा की उत्पादकता को बढ़ाने एवं खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भी विभिन्न योजनाओं को स्वीकृति मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक सम्पन्न हुई। इस बैठक के दौरान केंद्र सरकार द्वारा किसानों के हित में विभिन्न महत्वपूर्ण निर्णय लिए। केंद्रीय कैबिनेट ने सल्फर कोटेड यूरिया की शुरुआत को हरी झंडी दे दी। सल्फर कोटेड यूरिया को यूरिया गोल्ड के नाम से जाना जाएगा। इससे पूर्व सरकार नीम कोटेड यूरिया भी लेकर आ चुकी है। साथ ही, सरकार ने नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाने का भी फैसला किया है। साथ ही, यूरिया सब्सिडी स्कीम को 31 मार्च 2025 तक जारी रखने के लिए कैबिनेट से हरी झंडी मिल चुकी है। इसके अतिरिक्त मृदा की उत्पादकता को बढ़ाने एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु भी विभिन्न योजनाओं को मंजूरी मिली है। साथ ही, कचरे से पैसा बनाने के लिए मार्केट डेवलपमेंट अस्सिटेंस के लिए 1451 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया है। वहीं, पराली एवं गोबर्धन पौधों से ऑर्गेनिक खाद बना कर मृदा की गुणवत्ता को बढ़ाया जाएगा।

पंजाब में सबसे ज्यादा खाद का इस्तेमाल किया जाता है

कैबिनेट बैठक के उपरांत केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है, कि जो राज्य सरकारें कम उर्वरकों का उपयोग करेंगी, उनको केंद्र की तरफ से प्रोत्साहन दिया जाएगा। विशेष बात यह है, कि पंजाब खाद का इस्तेमाल करने में नंबर वन राज्य है। इसने पहले के तुलनात्मक 10 प्रतिशत ज्यादा उर्वरक का इस्तेमाल किया है, जबकि पैदावार में गिरावट आई है। ये भी पढ़े: इस राज्य में किसान कीटनाशक और उर्वरक की जगह देशी दारू का छिड़काव कर रहे हैं

किसानों के लिए 3.7 लाख करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की घोषणा

साथ ही, केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडविया ने कहा है, कि कैबिनेट ने किसानों के लिए 3.7 लाख करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की है। साथ ही, बैठक में पीएम प्रणाम योजना के नाम से एक योजना चालू करने का फैसला लिया गया है। इस योजना के अंतर्गत यदि कोई राज्य रासायनिक खाद के स्थान पर जैविक खाद का उपयोग करता है, तो सब्सिडी पर होने वाली बचत राशि को उसी राज्य को प्रोत्साहन के रूप में दिया जाएगा।

केंद्र सरकार सल्फर कोटेड यूरिया हेतु 370000 करोड़ रुपये का खर्चा करेगी

जानकारों के मुताबिक, सल्फर कोटेड यूरिया का उपयोग करने से किसानों को काफी लाभ मिलेगा। साथ ही, उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होगी। केंद्र सरकार आगामी 3 साल में सल्फर कोटेड यूरिया के ऊपर 370000 करोड़ रुपये का खर्चा करेगी। फिलहाल, भारत में 12 करोड़ किसान उर्वरक उपयोग कर रहे हैं। औसतन केंद्र सरकार प्रत्येक किसानों को 21233 रुपये उर्वरक सब्सिडी के तौर पर देती है। मुख्य बात यह है, कि विगत एक वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा 12 करोड़ किसानों को उर्वरक सब्सिडी के रूप में 630000 करोड़ रुपये दिया है। वर्तमान में भारत खाद की मांग को पूर्ण करने हेतु दूसरे देश से 70 से 80 लाख मीट्रिक टन फर्टिलाइजर आयात करता है।